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2024 ഒക്ടോബർ 5 വൈകീട്ട് 4.30 ന്എറണാകുളം പബ്ലിക് ലൈബ്രറിയിൽ 'ചിരിസ്മരണ' . എം. എം. ലോറൻസിന്റെ മരണം മൂലം മാറ്റിവെച്ച 'ചിരിസ്മരണ' എന്ന പരിപാടി ഒക്ടോബർ അഞ്ചിന് വൈകീട്ട് നാലര മണിക്ക് നടത്തുന്നതാണ്. പ്രസിദ്ധ ഹാസ്യ സാഹിത്യകാരൻ വേളൂർ കൃഷ്ണൻകുട്ടിയെ അനുസ്മരിക്കുന്ന പരിപാടിയിൽ 'വേളൂർ കൃഷ്ണൻകുട്ടിയുടെ സാഹിത്യലോകം' എന്ന വിഷയത്തിൽ ശ്രീകുമാർ മുഖത്തല അനുസ്മരണ പ്രഭാഷണം നടത്തും. വേളൂർ കൃഷ്ണൻകുട്ടയുടെ മകൻ വിനോദ് എൻ. കെ. ചടങ്ങിൽ സംസാരിക്കും. ലൈബ്രറി പ്രസിഡണ്ട് അഡ്വ: അശോക് എം. ചെറിയാൻ അധ്യക്ഷത വഹിക്കും.
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CHANAKYA TUM LAUT AAO /चाणक्य तुम लौट आओ

By: Language: Hindi Publication details: New Delhi Vidya Vihar 2015/01/01Edition: 1Description: 207ISBN:
  • 9789382898559
DDC classification:
  • HA SHI/CH
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Item type Current library Collection Call number Status Date due Barcode
Lending Lending Ernakulam Public Library Fiction Fiction HA SHI/CH (Browse shelf(Opens below)) Available H116283

भारतीय ऐतिहासिक संस्कृति की पुरातनता तथा भारत की सांस्कृतिक ऐतिहासिकता की प्राचीनता पर पाश्चात्य विद्वान् साहित्यकारों, यथा—‘विलियम जोंस’ प्रभृति जानकारों ने अपनी धार्मिक वर्चस्वता का भारत की ऐतिहासिक प्राचीनता पर जिस रूप में हमला बोलने का अत्युक्तिप्रद प्रयास किया, भारतीय विद्वान् साहित्यकारों को कदापि सह्य न हुआ। विद्वान् साहित्यकार डॉ. शिवदास पांडेय के प्रस्तुत उपन्यास ‘चाणक्य, तुम लौट आओ’ में तथा इसके पूर्व प्रकाशित उपन्यासों—‘द्रोणाचार्य’, ‘गौतम गाथा’ के प्राक्कथनों में उसकी नितांत अध्ययनशीलता की सीरिज उरेही जा सकती है। इन प्राक्कथनों में पाश्चात्यों के हमलों के मुँहतोड़ व्यक्त-अव्यक्त प्रत्युत्तर गौर करने योग्य हैं।

डॉ. शिवदास पांडेयजी की औपन्यासिक दक्षता पुरातन ऐतिहासिक इमारतों के टूटे-फूटे रूप को अपने अद्वितीय कौशल से प्रशंस्य साहित्यिक शिल्पी के स्वरूप ढालने में है। इन्होंने अद्वितीय, अपूर्व रूप में अपने सत्कार्य स्वरूप की सफल सिद्धि की है।

लेखक ने अपनी सृजन शक्ति की कल्पनात्मक डोर से सघन कथात्मक धूमिलताओं के बीच गहरे गड़े जिस अद्वितीय कौशल से प्रकाश का आँगन उकेरा, संयुक्त सूत्रात्मक बंधन में बाँधा, इस अभिनव बौद्धिक विशेषता को अपनी सविशेष सोच से अशेष-गौरव उन्हें स्वतः प्राप्त हो जाता है।

इतिहास जब साहित्य-मुख से अपने को अभिव्यक्त करता है तो निजी अविरामता में ‘द्रोण’ और ‘चाणक्य’ सदृश सरस्वती ही अपना नया उद्भव प्राप्त करती हैं। निश्चय ही, डॉ. शिवदासजी ने अपने ‘चाणक्य, तुम लौट आओ’ उपन्यास के जरिए भारतीय पुरातन क्षितिज के अनेक गौरवशील ध्रुव तारों के जो अभिनव परिचय कराए हैं, वैश्विक धरातल पर मानव-समाज की वे नूतन संस्कारगत लब्धि कहे जा सकते हैं।

—डॉ. सियाराम शरण सिंह ‘सरोज’

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